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आईआईटी रुड़की ने प्रोफेसर अरुण के शुक्ला को खोसला राष्ट्रीय पुरस्कार-2021 (विज्ञान) से सम्मानित किया

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रिपोर्ट ब्रह्मानंद चौधरी रुड़की

जी प्रोटीन-कपल्ड रिसेप्टर्स की संरचना (स्ट्रक्चर), कार्य (फंक्शन) और मॉड्यूलेशन को समझने में दिए उत्कृष्ट योगदान के लिए मिला सम्मान भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (आईआईटी रुड़की) ने, आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर अरुण के शुक्ला, को बीएसबीई विभाग के ऑडिटोरियम में, खोसला राष्ट्रीय पुरस्कार-2021 (विज्ञान) से सम्मानित किया। यह पुरस्कार आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रोफेसर, ए के चतुर्वेदी, द्वारा प्रोफेसर अरुण के शुक्ला को जी प्रोटीन- कपल्ड रिसेप्टर्स (जीपीसीआर) की संरचना, कार्य और मॉड्यूलेशन को समझने में दिए उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया गया। डॉ. शुक्ला ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी से बायोटेक्नोलॉजी में मास्टर (एमएससी) डिग्री प्राप्त की है। इसके बाद उन्होंने प्रो. हार्टमट मिशेल (नोबेल पुरस्कार विजेता, 1988) के मार्गदर्शन में जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ बायोफिजिक्स में डिपार्टमेंट ऑफ़ मॉलिक्यूलर मेम्ब्रेन बायोलॉजी से पीएचडी पूरी की। उन्होंने अपना पोस्ट-डॉक्टोरल रिसर्च यूएसए में प्रो. बॉब लेफकोविट्ज़ (नोबेल पुरस्कार, 2012) और ब्रायन कोबिल्का (नोबेल पुरस्कार, 2012) के साथ किया। डॉ शुक्ला वर्तमान में आईआईटी कानपुर में बायोलॉजिकल साइंसेज और बायोइंजीनियरिंग विभाग में जॉय गिल चेयर प्रोफेसर हैं। उनका रिसर्च प्रोग्राम जी प्रोटीन- कपल्ड रिसेप्टर्स (जीपीसीआर) की संरचना, कार्य और मॉड्यूलेशन को समझने पर केंद्रित है, जो मानव जीनोम में कोशिका सतह रिसेप्टर्स का सबसे बड़ा परिवार है और वर्तमान में उपलब्ध दवाओं में से लगभग आधे का लक्ष्य है।
पुरस्कार प्रदान करने पर, आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. अजीत के चतुर्वेदी ने कहा, “मुझे इस बात की बहुत खुशी है कि प्रोफेसर अरुण कुमार शुक्ला विज्ञान श्रेणी में आईआईटी रुड़की के खोसला राष्ट्रीय पुरस्कार के विजेता हैं। वह देश के सबसे प्रतिभाशाली युवा वैज्ञानिकों में से एक हैं, जिन्होंने हमारे शरीर में कोशिकाओं की सतह पर स्थित प्रोटीन के सबसे बड़े वर्ग जी प्रोटीन- कपल्ड रिसेप्टर्स (जीपीसीआर) की संरचना, कार्य और मॉड्यूलेशन को समझने के लिए अपने व्यापक शोध के साथ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। उनके शोध से कई मानव रोगों के इलाज के लिए न्यूनतम दुष्प्रभावों के साथ नावेल थेराप्यूटिक्स को विकसित करने में मदद मिलेगी। शोध के निष्कर्षों को स्पष्ट करते हुए, आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर अरुण के शुक्ला ने बताया,ये जी प्रोटीन-कपल्ड रिसेप्टर्स (जीपीसीआर) लगभग हर शारीरिक प्रक्रिया में जटिल रूप से शामिल होते हैं और फ़िलहाल उपलब्ध दवाओं में से लगभग आधी दवाएं इन रिसेप्टर्स के माध्यम से ही अपना चिकित्सीय प्रभाव डालती हैं। हमारे शोध ने इस बात को स्पष्ट किया है कि चिकित्सकीय रूप से निर्धारित दवाएं कैसे रोगों के साथ परस्पर क्रिया करती हैं और मानव शरीर में उनके (सजातीय) कॉग्नेट रिसेप्टर्स के कार्य को नियंत्रित करती हैं। हमने पहले से अनप्रीशीऐटिड मेकनिज़म की भी खोज की है जिनका उपयोग जीपीसीआर कोशिकाओं के बाहर की जानकारी प्राप्त करने के लिए करते हैं और संदेश को सेल मेम्ब्रेन में प्रसारित करते हैं। अभी हाल ही में, हमने एंटीबॉडी के टुकड़े (फ़्रैगमेन्ट्स) जैसे सिंथेटिक प्रोटीन तैयार किए हैं जिनका उपयोग जीपीसीआर एक्टिवेशन और ट्रैफिकिंग को मॉनिटर करने के लिए किया जा सकता है, और सेलुलर संदर्भ (कॉन्टेक्स्ट) में जीपीसीआर सिग्नलिंग को रीवायर करने के लिए किया जा सकता है।

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