शादाब अली जोकि उत्तराखंड से लेकर उत्तर प्रदेश तक हजारों गोवंश की जाने बचा डाली होगी और समाज सेवा में भी अपनी के जान की परवाह की बगैर कोरोना काल में उत्तर प्रदेश उन्नाव जिले में हजारों गरीब आशाओं के लोगो के घरों पर राशन देने का काम किया था वही फिर ठंड के प्रकोप को देखते हुए हजारों लोगों को कमल देने का काम किया था उसके साथी शादाब अली की एक मुहिम कोरोना काल मे डॉक्टर सरकारी अधिकारी व कर्मचारियों को तहसील स्तर से लेकर जिला स्तर तक करोना योद्धा सैटिफिकेट देकर सम्मानित करने का काम किया था लेकिन वाकई समाजसेवी करने वाले लोगों का उत्तराखंड से लेकर प्रदेश सरकार से लेकर राज्य सरकारों में कोई गिनती नही होती।
पत्रकार को गाली जब दो जब तुम ने पत्रकार को ₹1 की मदद की हो
पत्रकार को गाली जब दो जब तुमने पत्रकार के घर का चूल्हा जलवाया हो ।
पत्रकार को गाली जब दो जब तुमने पत्रकार के बच्चों को स्कूल में एडमिशन करवाया हो।
पत्रकार को गाली जब दो जब तुम्हारी सरकार ने अपने नौकरशाहों, अधिकारियों के जैसा तनखा पत्रकारों को दी हो
पत्रकारों को गाली जब दो जब तुम पत्रकारों के मरने पर उन को कंधा देने पहुंचे हो
पत्रकारों को गाली तब दो जब कोरोना से जो हजारों पत्रकार मर गए उनके परिवारों को जाकर तुमने दो वक्त की रोटी भी खिलाई हो
पत्रकार बिक गए , पत्रकार मोदी सरकार के गुलाम हैं, पत्रकार सच नहीं दिखा रहे, पत्रकार ऑक्सीजन की कमी नहीं दिखा रहे , पत्रकार अस्पतालों की अवस्थाएं नहीं दिखा रहे , यह सब फिजूल की बातें लिखने से अच्छा है पत्रकारों की हालत देखो आज तमाम चैनलों में सिर्फ टीआरपी का खेल चल रहा है हजारों पत्रकारों को निकाल दिया गया है जो बेचारे वेब पोर्टल के पत्रकार थे आज वह भी दर बदर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं, उसके बाद भी अगर पत्रकारिता कर रहे हैं देश का कुछ दिखा रहे हैं तो ऊपर से तुम जैसे लोग व सत्ताधारी दबंग वह सत्ता में बैठे आकाओं के आशीर्वाद से मित्र पुलिस से लेकर नेताओं के संरक्षण में पेस बंदी में बिना जांच बिना सबूत के फर्जी मुकदमे लिख दिए जाते है पत्रकार चाहे जितना भी चिल्लाए और चाहे कितना भी गिड़गिड़ा था रहे प्रदेश सरकारों से लेकर राज्य सरकारों तक की अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों के बारे में चाहे वह लिखित में अवगत कराएं और चाहे ट्वीट के माध्यम से और चाहे फोन के माध्यम से लेकिन सरकार मैं बैठे नौकरशाहों का सिर्फ दिखावा चल रहा है चाहे एसजीआरएस के माध्यम से भी फर्जी सूचनाएं लगा कर भेज दी जाती है जिस पर कई लंबित सूचनाएं डिस्चार्ज हो जाती है पत्रकारों को दलाल ,बिका हुआ, चाटुकार और ना जाने किन किन नामों से पुकारते हैं तो तुमसे साफ शब्दों में कहा जा रहा है कि पत्रकार तुम्हारे बाप के गुलाम या नौकर नहीं है जिस तरह से तुम अपना काम करते हो पत्रकार भी अपना काम कर रहे हैं और पत्रकारिता करने के लिए किसी भी व्यक्ति की आज्ञा परमिशन लेने कि हम पत्रकारों को जरूरत नहीं है तो औकात में रहे अपने शब्दों को काबू में रखें पत्रकार दुनिया की सच्चाई दिखाने के लिए अपनी जान आज भी खो रहा है पिछले 1 महीने में हमारे देश से हजारों पत्रकार मर चुके हैं उनके घरों में आज खाने तक के लाले पड़े हुए हैं तुम में से किसी एक इंसान ने पत्रकार के मरने के बाद उसके घर पर जाकर अगर दो वक्त का अनाज दिया हो तो मेरे सामने आए ।
शदाब अली पत्रकार व भारतीय गौ रक्षा वाहिनि उत्तराखंड उत्तर प्रदेश प्रभारी R S S विचार धारा,