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कर्बला के शहीदों पर लाखों दुरुद, लाखों सलाम शहर से लेकर देहात तक में मातमी जुलूस व ताजिये अखाड़े निकाले इस्लाम जिंदा होता है, हर कर्बला के बाद

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रिपोर्ट ब्रह्मानंद चौधरी रुड़की

रुड़की। कर्बला में शहीद हुए 72 की याद में 10 मुहर्रम के दिन शहर से लेकर देहात तक शिया, सुन्नी समुदाय के लोगों ने मातमी जुलूस व ताजिये अखाड़े निकाले। इस अवसर पर सुरक्षा की दृष्टि से भारी पुलिस बल तैनात रहा। वहीं रुड़की शहर में आठ से दस अखाडे निकाले गये। इसके अलावा ईमली रोड स्थित शिया समुदाय का भी मातमी जुलूस शांतिपूर्वक निकाला गया।
बताते चले कि प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी रुड़की शहर व आसपास के देहात इलाकों में शिया व सुन्नी समुदाय द्वारा हजरत ईमाम हुसैन अलैहिस्लााम की शहादत को याद कर मातमी जुलूस व ताजिये, अखाडे निकाले गये। पूर्वी अम्बर तालाब दुर्गा चौक स्थित शाने अकबरी साबरी अखाडे का उद्घाटन खानपुर के विधायक उमेश कुमार शर्मा ने किया। अखाडा के पूर्व खलीफा पत्रकार रियाज कुरैशी ने विधायक उमेश कुमार की दस्तारबंदी कर स्वागत किया। और हिंदुस्तान का तिरंगा झंडा देकर व मामला पहनाकर सम्मानित किया। इस मौके पर विधायक उमेश कुमार ने कहा कि कर्बला के शहीदों की शहादत को कभी नहीं भुलाया जा सकता। बुराई पर अच्छाई की जीत हमें हमेशा हजरत ईमाम हुसैन अलैहिस्लाम की याद दिलाती रहेगी। वहीं खिलाड़ियों के हैरतअंगेज कारनामे देख कर विधायक उमेश कुमार ने उनकी हौंसलाअफजाई की। शाने अकबरी साबरी अखाड़ा, इंडियन साबरी अखाड़ा, बख्शा अखाड़ा रामपुर, साबरी अखाड़ा राजकीय कन्या इंटर कालेज, अकबरी अखाड़ा आजादनगर, इंडियन अखाड़ा पठानपुरा आदि अनेक अखाड़ों ने मुहर्रम की 10 तारीख पर शहर मुख्य बाजारों के अलावा मुस्लिम बस्तियों में अखाड़ों का आयोजन कर करतब दिखाये। इस मौके पर शायर अफजल मंगलौरी ने सभी अखाड़ों के उस्ताद, खलीफाओं को पगड़ी पहनाकर सम्मानित किया। कर्बला के वाक्ये पर रोशनी डालते हुए शायर अफजल मंगलौरी ने बताया कि सन 680 (61 हिजरी) का है। इराक में यजीद नामक इस खलीफा (बादशाह) ने इमाम हुसैन को यातनाएं देना शुरू कर दिया। उनके साथ परिवार, बच्चे, बूढ़े बुजुर्ग सहित कुल 72 लोग थे। वह कूफे शहर की ओर बढ़ रहे थे, तभी यजीद की सेना ने उन्हें बंदी बना लिया, और कर्बला (इराक का प्रमुख शहर) ले गई। कर्बला में भी यजीद ने दबाव बनाया कि हुसैन मेरी बैअत कर लें। लेकिन हजरत ईमाम हुसैन अलैहिस्लाम ने जुल्म के आगे झुकने से साफ इनकार कर दिया। और जंग जीत कर इस्लाम को सरबुलंदी अता की। उन्होंने कहा कि ईमान हुसैन अलैहिस्लाम का रास्ता ही हक का रास्ता है। इस रास्ते पर चलकर हम दुनिया में भी कामयाब होंगे और आखरत में भी।

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