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चमनलाल महाविद्यालय में मानवाधिकार प्रशिक्षण कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने किया नई पीढ़ी का मार्गदर्शन

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(संवाददाता :-ब्रह्मानंद चौधरी रुड़की) रुड़की। चमनलाल महाविद्यालय, लण्ढौरा में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) नई दिल्ली के संपोषित तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम की दूसरे दिन विधिवत शुरूआत महाविद्यालय के प्रबंध समिति के अध्यक्ष पं. राम कुमार शर्मा एवं प्रबंध समिति सचिव श्री अरूण हरित के साथ मुख्य अतिथि प्रो. दिनेश शर्मा, राजनीति विज्ञान विभाग, श्री देव सुमन विश्वविद्यालय, ऋषिकेश कैम्पस के नेतृत्व में ज्ञानदायिनी माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण के साथ हुई। कार्यक्रम के आरंभ में प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. नीशू कुमार ने कार्यक्रम की विस्तृत रूप रेखा प्रस्तुत करते हुए अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया। श्री देव सुमन विश्वविद्यालय, ऋषिकेश कैम्पस के प्रोफेसर एवं मुख्य अतिथि प्रो. दिनेश शर्मा ने कहा कि भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार संबंधी प्रावधान में शिक्षा के बारे में बात करते है। सबसे बड़ा साम्राज्य ब्रिटेन का रहा जिसके राज में सूरज नहीं डूबता था। औरत को घर की चहारदीवारी में बंद कर दिया गया। अगर बचपन से लड़की को गुड्डे गुड़िया दे दी और लड़के को बंदूक और गाड़ी दे दी तो वहीं से भेदभाव प्रारम्भ हो जाता है। अगर भारतीय समाज की बात करें, तो यह पुरुष प्रधन समाज है। घरेलू हिंसा भी बहुत ज्यादा है। बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ आजकल बहुत प्रचलित है, जबकि बालिका और बालकों में आज भी ग्रामीण समाज में भेदभाव किया जाता है। जब तक शरीर से सभी अंग स्वस्थ नहीं होगे तब तक शरीर सही से कार्य नहीं करेगा। अगर अधिकार नहीं है, तो मनुष्य और जानवर में कोई अन्तर नहीं है।

श्री देव सुमन विश्वविद्यालय, ऋषिकेश कैम्पस के प्रोफेसर एवं विशिष्ट अतिथि प्रो. हेमलता मिश्रा ने कहा कि जन्म से अधिकार प्राप्त हो जाते है। सभ्यता की शुरूआत के साथ ही अधिकार प्राप्त होते है। भारत के वेदों में अधिकार की बात होती है। मग्नाकार्टा और 1688 में अधिकारों और उसके संरक्षण की बात होती है। फिर बार-बार मानवाधिकारों की बात क्यों होती है। 1945 के द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना होती है। महिलाओं के लिए अलग से प्रावधानों की आवश्यकता क्यों पड़ी? हम आधी आबादी है किन्तु महिलाओं की स्थिति सुदृढ़ नहीं है। किसी भी घर में आपस आती है तो महिलाओं पर सबसे ज्यादा फर्क पड़ता है। हम कमजोर वर्ग में क्यों आते है। दुनिया की आबादी की चर्चा की गई और उनके अधिकारों पर चर्चा की गई।
मेरठ कॉलिज मेरठ की एसोसिएट प्रोफेसर एवं विशष्टि वक्ता डॉ. अनीता मोरल ने कहा कि सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है मजबूत इंसान होना। जब आप अंदर से मजबूत महसूस करते है तो आपका अपनी समस्या से बाहर आने या एक विजन और नक्शा होात है। निरपेक्ष कुछ नहीं होता है। सब कुछ सापेक्ष होता है। डर सबको लगता है। आप कानून के कितने भी प्रावधान कर ले, लेकिन यदि व्यवहार में ऐसे मामलों में संवेदनशील नहीं होते है, तो सब बेकार है। आपके व्यक्तित्व निर्माण में 70 प्रतिशत नींव 7-8 वर्ष की उम्र तक रखी जा चुकी होती है। आर्थिक रूप से अगर आप आत्मनिर्भर नहीं है तो आप सशक्त नहीं है। जो महिलाएं आत्मनिर्भर है घरेलू हिंसा उनके साथ भी होती है। क्योंकि हमारा पालन पोषण उसी प्रकार से हो रहा है।
यौन हिंसा- भंवरी देवी, बाल विवाह रोकने के लिए पहुंचती है लेकिन बाद में भंवरी देवी के साथ अन्याय होता है। पांच वर्ष बाद विषाखा गाइडलाइन आयी। यह पूरे भारत में लागू होती है। महिलाओं को लेकर यह बना है। पीड़ित महिला वो है जो अपने कार्यस्थल पर यौन हिंसा का शिकार होती है। प्रत्येक कार्यस्थल पर आंतरिक शिकायत कमेटी गठित की जायेगी, जिसमें चार व्यक्ति सदस्य होंगे। तीन महीने के अन्दर शिकायत कर सकते है। तीन महीने बाद भी शिकायत की जा सकती है।
मुख्य वक्ता डॉ. मनोज कुमार त्रिपाठी ने कहा कि संविधान में आज अधिकारों की बात की गयी है, तो कर्तव्यों की बात भी की गई है। भारतीय समाज में परिवार की संकल्पना की गई है। जहां सभी एक दूसरे के कर्तव्यों से जुड़े है, अधिकारों की कोई बात नहीं की गई है। परिवार का सबसे बड़ा सदस्य एवं स्त्रियां परिवार के सदस्यों के प्रति जिम्मेदारी के निवर्हन में ही लगा रहता है। भारत तो पूर्ण पृथ्वी को परिवार मान कर चलता हे। पाश्चात्य संस्कृति में व्यक्तिवादी एप्रोच है। विदेशों में छोटे बच्चों को अलग बेडरूम न होने पर माता-पिता को नोटिस दे दिया जाता है। 10 दिसम्बर 1948 को मानवाधिकार आयोग की स्थापना की गई थी। इसके अनुसार सभी व्यक्तियों के जन्मजात अधिकार होते हैं, जिन्हें मानवाधिकार कहते हैं। 10 दिसम्बर को अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकार संरक्षित किये गये है। भारतीय संविधान विश्वव का सबसे लम्बा संविधान है। संविधान को भारत के लोगों पर थोपा नहीं गया है बल्कि भारत के लोग स्वेच्छा से संविधान को स्वीकार करते है। संविधान भारत के लोगों को हर प्रकार के न्याय के लिए आश्वस्त करता है। इसके बाद समानता के लिए भी आश्वस्त करता है। हम कितनी भी संवैधानिक संस्थायें बना ले, जब तक हम नैतिक रूप से मजबूत नहीं होते, तब तक सही जीत हासिल नहीं होगी।प्राचार्य, डॉ. सुशील उपाध्याय ने अपने उद्बोधन में कल पी.पी.टी. प्रेजेन्टेशन एवं भाषण के द्वारा मानवाधिकार पर चर्चा की गई। आज फिर से मानवाधिकार पर चर्चा की जायेगी और छात्रों की परीक्षा होगी। प्रथम पांच छात्र-छात्राओं को इनाम में धनराशि प्रदान की जायेगी। विद्वान अपने लेवल पर बात कहता है, किन्तु सुनने वाला उसे ग्रहण करने की पात्रता नहीं रखता है। कार्यक्रम में डॉ. हिमांशु, डॉ.अनीता, नवीन कुमार, डॉ. श्वेता, डॉ. देवपाल, डॉ. किरण शर्मा, डॉ. पुनीता,विपुल सिंह आदि शिक्षक उपस्थित रहें।

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